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हमारी सदा

हमारी सदा
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हमारी सदा हमारी सदा, न किसी किसी व्यक्ति विशेष की आवाज है और न ही समूह विशेष की आवाज बल्कि दो ऐसे दिलों की आवाज जो समाज और व्यवस्था के नज़र में सदैव ही दोषी करार दिए गए. हमारी सदा उस सामाजिक, राजनितिक, प्रशासनिक, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया के खिलाफ एक आवाज है जो धर्म, मर्यादा, मान-सम्मान, न्याय-सच इत्यादि का का चोला पहनकर मानवता को तार-तार करती आयी है और आये दिन खुद को सही साबित करने के लिए एक दुसरे पर कीचड़ उछालती आयी है. हरेक व्यक्ति अपने नज़र में सही, हरेक व्यवस्था अपने नज़र में सही तो फिर गलत कौन ?, यह उठक-बैठक क्यों है? सच तो यह है कि “हमारी सदा” हम मानवों की उस मानसिकता के खिलाफ आवाज है जो अपने स्वार्थ और वर्चस्व के लिए जात-धर्म, उंच-नीच, अमीर-गरीब, गोरा-काला, तू-मैं, अपना-पराया, मान-मर्यादा इत्यादि के नाम पर पुरे दुनिया में अशांति, द्वेष, नफ़रत, हिंसा, साम्प्रदायिकता की एक ऐसी आग फैलायी है जिसमे मानवता के साथ-साथ पूरा विश्व तप रहा है. ऐसे में किसी व्यक्ति विशेष, समूह विशेष अथवा व्यवस्था विशेष को समझने की बजाय हमें अपनी मानसिकता को समझना होगा और यह तभी संभव है जब हम दूसरों की बजाय अपने मन की गति को पकड़ पाएंगे. आखिरकर दूसरा भी तो वही चाहता है जो हम चाहते हैं……………………………तो फिर…………………………………?
अभी तक तो आप सभी समझ ही गए होंगे कि आखिर मैं कौन हूँ? जी आपने सही पहचाना …..मैं हूँ अनिल कुमार ‘अलीन’….किसी का दोस्त तो किसी का दुश्मन पर हकीकत तो यह है कि न कोई मेरा दोस्त है और न कोई मेरा दुश्मन यह सब आप सबकि मन की उपज है मैं तो वही सामने रखता हूँ जो देखता हूँ. हाँ तो अपने पहले कदम के रूप में, मैं आवाज उठाना चाहता हूँ संपादक महोदय, जागरण जन्शन परिवार पर जिनके ऊपर फीडबैक में मेरी व्यंग्यात्मक टिप्पड़ी के कारण मुझे यहाँ से निष्कासन की सजा सुनाई गयी और वो भी बिना किसी सुनवाई और स्पष्टीकरण के. चलिए मैं मान लेता हूँ कि मैं शत-प्रतिशत दोषी था. परन्तु मुझे अपनी बात रखने के लिए एक मौका तो मिलना चाहिए था. यह कैसी निष्पक्षता और न्याय व्यवस्था है जहाँ बिना कोई स्पष्टीकरण मांगे या फिर बिना कोई गुनाह साबित हुए, सीधे मेल करके सजा सुनाई जाती है कि मेरे गैर-अनुशासनात्मक कृत के लिए मेरे ब्लॉग को बंद किया जाता है और इसे पुनः चालू करने के लिए मुझे सार्वजनिक रूप से अफ़सोस व्यक्त करने के लिए कहाँ जाता है. इससे स्पष्ट होता है कि संपादक महोदय, जागरण जन्शन परिवार या तो गूँगा-बहरा है या फिर कुछ चंद चाटुकारों के अनुसार चलते हैं या फिर हमारी आवाज उनतक पहुँच नहीं पाती और बिच में ही कुछ चमचे अपनी मनमानी कर रहे हैं. ऐसे में संपादक महोदय, जागरण जन्शन परिवार से क्या निष्पक्षता और न्याय व्यवस्था की उम्मीद की जा सकती है………………?
आप सभी का,
अन्जानी-अनिल

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